पत्रिका न्यूज़ के मुताबिक देश को मिला बिना जाति और धर्म वाला पहला नागरिक (First citizen without caste and religion) जी हाँ सुनने में थोड़ा अजीब है लेकिन स्नेहा माता-पिता हमेशा जाति और धर्म वाला कॉलम खाली छोड़ते थे, लेकिन 35 वर्षीय स्नेहा अब अधिकारिक रूप से ऐसा करेंगी। तमिलनाडु के बेलूर निवासी स्नेहा ने ऐसा प्रमाणपत्र हासिल किया है जो अब तक भारत के किसी नागरिक के पास नहीं 5 फरवरी को तिरुपत्तूर के तहसीलदार टीएस सत्यमूर्ति ने उन्हें बिना जाति और धर्म (नो कास्ट, नो रिलिजन) वाला प्रमाणपत्र सौंप दिया।
अब सरकारी दस्तावेजों में उन्हें जाति बताने या उसका प्रमाण पत्र लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हालांकि पेशे से वकील स्नेहा को इसके लिए नौ साल का इंतजार करना पड़ा। तिरुपत्तूर में वकालत कर रहीं स्नेहा इस कदम को एक सामाजिक बदलाव के तौर पर देखती है। स्नेहा के मुताबिक, ‘जाति और कमल हासन ने की तारीफ स्नेहा के इस कदम की अभिनेता से नेता बने कमल हासन ने भी तारीफ की है। उन्होंने ट्वीट कर स्नेहा को इस पहल पर बधाई दी।
First citizen without caste and religion: स्नेहा कहती है कि कई अदालतों के और सरकार के आदेश है कि किसी को भी प्रमाणपत्रों में जाति के नाम का उल्लेख करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।धर्म कुछ नहीं होता है। हम इंसान है। वह कहती हैं, एक वकील होने के नाते मैं इस जात-पात के इस बंधन को तोड़ना चाहती थी।
खंगाले गए स्कूल के सभी दस्तावेज: स्नेहा ने इस सर्टिफिकेट के लिए 2010 में आवेदन किया था, लेकिन अधिकारी उसे टालते रहे। स्नेहा के अनुसार, तिरुपत्तूर की उप जिलाधिकारी प्रियंका पंकजम ने सबसे पहले इसे हरी झंडी दी। इसके लिए उनके स्कूल के सभी दस्तावेज तक खंगाले गए। स्नेहा के पति के प्रतिभा राजा माता-पिता ने अपनी तीनों बेटियों का नाम ऐसा रखा ताकि जाति या धर्म की पहचान न हो सके। स्कूल से लेकर अब तक के सभी कॉलम में सिर्फ भारतीय लिखा हुआ है।
तहसीलदार को अधिकारः स्नेहा को यह अधिकार एक खास नियम के तहत मिला है। तिरुपत्तूर की उप जिलाधिकारी प्रियंका पंकजम ने पेशे से तमिल प्रोफेसर हैं। इन दोनों ने अपनी बेटियों के नाम भी ऐसे रखे हैं जिससे कोई उनका धर्म न पहचान पाए – अधिरई नसरीन अधिला इरीन और आरिफा। कहा कि यह एक अपवाद है। तहसीलदार को अधिकार होता है कि वह सत्यापन के बाद इस तरह का प्रमाणपत्र जारी कर सकता है।
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