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Lakhimpur Bus Accident: गांजर टू राजधानी बस सेवा बन गई एक दर्दनाक कहानी…

Lakhimpur Bus Accident: गांजर मुख्यालय धौरहरा टू बसंतापुर-भौआपुर-सरसवा वाया रेहुआ चौरहा से सीधा राजधानी लखनऊ के पक्के पुल तक चलने वाली यात्री बस। ये वही बस थी जो धौरहरा से सुबह सात बजे चलती थी और पूर्वान्ह 11 बजे तक हर हाल में लखनऊ के पक्के पुल के पास इन सवारियों को उतारती थी। ये बस गांजर इलाके के उन सैकड़ों जरूरतमंदों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती थी जिनको कोर्ट कचेहरी, दवा इलाज, धंधा रोजगार के लिए हर दिन लखनऊ समय से पहुंचना होता था। उसी बस ने बुधवार को एक ऐसी दर्दनाक कहानी लिखी कि लोगों के मुंह से हाय भी नहीं निकली और एक के बाद एक आठ लोग काल के गाल में समा गए और दो दर्जन से ज्यादा गंभीर रूप से जख्मी हो गए।

परिवहन विभाग की लापरवाही

ये सरकारीतंत्र का नाकारापन था…जनप्रतिनिधयों की अनदेखी या फिर परिवहन विभाग की लापरवाही अब ये जिम्मेदारी कौन तय करे। जब एक प्राइवेट बस गांजर इलाके के उन सैकड़ों लोगों की जरूरत समझती थी जिनको हर दिन लखनऊ जाना होता था तो उस रूट से कोई सरकारी बस क्यों नहीं गुजारी जा रही थी। क्यों? एक प्राइवेट बस को जानबूझकर मौका दिया जा रहा था ये जानते हुए कि ये बस गांजर इलाके के लिए बेहद मुफीद आवश्यक है। तो क्यों सालों से इस रूट पर हो रहे संचालन पर सरकारी तंत्र की नजर नहीं पड़ी क्यों इस ट्रैक पर सरकारी बसों का संचालन नहीं बढ़वाया गया।

भूसे की तरह भरे गए थे यात्री

सवाल लाख टके का है लेकिन जवाब किसी के पास नहीं। गांव वालों की मानें तो ये बस सुबह ठीक सात बजे धौरहरा से निकल कर सीधे बसंतापुर गांव के सामने रुकती और वहां पहले से ही इंतजार कर रहे यात्री जिनको केवल लखनऊ जाना होता वह सवार हो जाते थे। इसी तरह से ये बस भौव्वापुर, सरसवा और रेहुआ चौराहे से भी यात्रियों को बिठाती और फिर सीधे लखनऊ के लिए रवाना हो जाती। खास बात ये भी है कि यही बस जिन यात्रियों को वापस आना होता था उनको भी यही बस उनके गंत्व्य यानि धौरहरा तक वापस लेकर आती थी। बुधवार को यही बस हादसे का शिकार हुई उसमें भूसे की तरह सवार यात्री भागना तो दूर अपनी जगह से हिल तक न सके।

मोबाइल पर अपनों से अपनों की खोज खबर लेते रहे लोग

हेलो…हां जिज्जी। कहां हो….हाय भैया हम तो चीड़खाना पर हन। तुमरे दौआ नाय रहे। ये कहते कहते एक महिला फोन पर ही दहाड़े मारकर रोने लगी। बुधवार को पोस्टमार्टम हाउस पर भारी भीड़ और हर दूसरे कान में लगे मोबाइल से लोग अपनों से अपनों का हाल जानने में जुटे रहे। किसी का भाई, किसी का पिता और किसी का पति ही स्वर्ग सिधार गया था और अब लोग चीख पुकार के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहे थे। लोग एक दूसरे को आश्वासन दे रहे थे लेकिन रह-रह कर उठती चीत्कार मानों हादसे की भयावहता को आखों के सामने ही ला रही थी।

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Source

India Times News
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